Wednesday, April 2, 2008

छोटी सी आशा

आंखों मे चमक लिए, दिल मे उम्मीद और कुछ करने का इरादा लिए कितने लोग हर सुबह इस दुनिया मे उठते है पर कितने ऐसे है जो सूर्यास्त होने पर भी अपनी आशा की रोशनी से अपनी जिंदगी रोशन रखते है सूर्योदय होने तक। बड़े-बड़े लोगो की उम्मीदे धराशायी होती देखी है चट्टानों से टकराकर पर एक नाज़ुक फूल को दुनिया की बेदर्द हवाओं के बीच भी खिलने उम्मीद के साथ देखा मैंने।

नाम पूछना तो मैं भूल ही गई थी उसे देखकर या यो कहूँ उसके इरादों की मजबूती देखकर। 8-10 साल के नन्हे हाथ गोल-गप्पे का ठेला खीचते हुए, दूसरी तरफ़ अपने भाई को सम्हाले हुए अपने इरादों की मजबूती के साथ दुनिया मे अपनी पहचान बनने के लिए बेकरार। उसके मजबूत इरादों की झलक उसकी आवाज़, उसके हाव-भाव मे भी झलक रही थी।

जब उसे ठेला खींचते हुए देखा तो लगा या तो बाप शराब पीता होगा, या बाप छोड़ गया होगा या घर मे पैसो की कमी के कारण उसे ठेला खीचना पड़ रहा है। मानो ऐसा लगा जैसे एक और बचपन शहर की लम्बी सडको पर खत्म हो रहा है। उसकी मासूमियत देखकर रहा नही गया सोचा उसके बारे मे जाना जाय, क्या मजबूरी थी जो एक और बचपन, बचपन की दहलीज़ लांघने के पहले ही प्रौढ़ हो जाना चाहता था या यूं कहूँ प्रौढ़ होने पर मजबूर किया गया था।

उसने अपने मासूम अंदाज़ मे बताना शुरू किया माँ-बाप गाँव मे है। गाँव मे खेती और मजदूरी से थोडी-बहुत कमाई होती है पर वो कमाई उसके सपनो को पूरा करने के लिए कम है। उतनी कमाई से पेट भी जब पूरा नही भरता तो सपने पूरा करने की सोचना भी मुश्किल है। यही सब सोचकर वो यहाँ शहर मे अपने भाई के साथ आ गया। यहाँ ठेले से जो कमाई होती है। उससे वो अपना और अपने भाई का खर्चा उठाता है और कोशिश करता है की कुछ बचाकर घर भी भेज सके।

ये सब जानने के बाद मेरी उत्सुकता और बढ़ गई। मैंने पूछा की क्या सपना है तुम्हारा? उसने बताया की वो पैसा कमाना चाहता है, अच्छा इंसान बनाना चाहता। पैसा कमाकर अपने माँ-बाप के दुःख दूर करना चाहता है। इसके लिए वो पढने भी जाता है "इंग्लिश मीडियम स्कूल" मे। सुबह पढने जाता है उसके बाद ठेला लगाता है और रात मे पढता है। ये सब बताते वक्त उसकी आंखो की चमक और बढ़ गई थी उसमे उसके मजबूत इरादों की झलक और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश थी। ऐसा लगा की शहर की लम्बी सडको पर वो अपना बचपन खोने नही बल्कि अपनी मंजिल का रास्ता तय करने आया है।

मंजिल उसे मिलती है या नही ये तो वक्त ही बतायेगा पर उसकी उम्मीदे, उसका हौसला शायद निराश होने चुके लोगो को रोशनी की किरण सामान लगे। इश्वर से यही प्राथना करुँगी की उस फूल को खिलने दे, जिंदगी की आंधी कही उसे उड़ा कर न ले जाए किसी के पैरो टेल कुचलने को। साथ ही यह भी प्राथना है की और किसी कलि को जिंदगी की धुप मे सुलगने को न छोड।

8 comments:

Anonymous said...

ruchi
check on my blog and my profile http://mujehbhikuchkehnahaen.blogspot.com/
i am trying to bring young woman under one umbrella to share thoughts if you are interested please send me a mail and i will send a invite to you
we are now 6 already and we will start a blog as soon we are 12 till then we will use my blog for enroling memebers, it will be a woman community blog to share our views with the world
you can confirm to on rachnasingh@hotmail.com
with love
rachna

Anonymous said...

seems, u r on track now.. a good one

s said...

hi ruchi..though i m nothing to comment on your article..but i feel u have presented an incident in a very thoughtful way..really nice work!
but i found it very difficult to read..matrayen theek se nahi thi..n also some of the words were not written properly..this actually breaks the rhythem.
Regards,
Sunil Jadoo

Ruchi said...

Hello Sunil,
thanx for ur suggestion. actually, matrayen ya word break hone ka problem hindi me type karne ki wajah se aaya hai ...
i ll take care of this in future ... thanxx...

s said...

Hi Ruchi,
You can write the same article in english as well. i mean we write the hindi words in english. I feel u might also have given it a thought but i am unable to understand why didnt u go ahead with that 'writing in english' way!
regards,
Sunil jadoo

Ruchi said...

i wanted to write in Hindi ... thats y ... i gave thought abt tht also ... finally it was Hindi

Gaurav said...

i came here out of curiousity but got stuck in between lines

very nicely penned
keep writing

Ruchi said...

thanxxx ...