Thursday, February 21, 2008

कहानी बम धमाको के बाद की

11/7 मुम्बई के धमाको की गूंज पूरी दुनिया ने सुनी पर उस धमाके की गूंज लोगो की जिंदगी मे धमाको के बाद भी गूंजती रही। बम धमाको के बाद मुम्बई कहने को तो कुछ घंटो बाद ही वापस अपनी पटरी पर आ गई पर लोग उसके बाद भी आतंक के साए मे थे। अपनों के जाने के घाव तो थे ही उस अनुभव की परछाई अब भी उनकी जिंदगियों मे थी। लोग धमाको से सचेत होने और आतंक से लड़ने की जगह उसे अपनी नियति मान बैठे थे। ये अनुभव मुझे मुम्बई बम धमाको के करीब आठ महीनों बाद हुआ।

होली के कुछ दिन बाद की बात है ... मैं मुम्बई लोकल बांद्रा से बोरीवल्ली सफर कर रही थी। महिलाओं का डिब्बा था और करीब 15-20 महिलाऐं थी। लोकल अपनी गति से सफर तय कर रही थी, किसी आम भारतीय कि तरह ... हमेशा अपने ढ़र्रे पर चलना है चाहे जो हो जाए उसे बदलना नही है। मैं खिड़की से बाहर देख रही थी, डिब्बे मे क्या हो रहा है उस से बेखबर शायद एक नागरिक होने की जिम्मेदारी से मुँह फेरकर।

तभी लोकल एक स्टेशन पर रुकी, कुछ लोग उतरे और कुछ लोग चढ़े और फिर लोकल आगे बढ़ चली। अगला स्टेशन आने मे करीब 12-15 मिनट कि देरी थी। तभी किसी कि नज़र ऊपर पड़े एक कागज़ के थैले पर पड़ी। उसने सबसे पूछा पर वो थैला किसी का ना था। कुछ ही क्षणो मे सबकी आखों के सामने मुम्बई बम धमाको कि तस्वीरे आ गई, जो घाव अभी भरे भी न थे ताज़ा हो गए। सबको ऐसा लगा जैसे लोकल और उनकी जिंदगी का सफर अभी खत्म होने को ही है। खौफ ने जैसे सबका सुकून ले लिया था। मुम्बईवासियों की जिंदगी कहने को तो बम धमाको के बाद नोर्मल हो गई थी पर अब भी उसकी परछाई ने उनकी जिंदगी को नही छोडा था।

तभी किसी ने कहा कोई देखो तो क्या है उस थैले मे। थैला मेरे सिर के ऊपर ही था। पर किसी की हिम्मत नही हुई अपने हाथो अपनी मौत देखने की। ये जानते हुए भी की मौत एक दिन आती ही है, लोग किस तरह इस सच से जिंदगी भर मुँह फेरते रहते है, किस तरह मौत का ख्याल भी उन्हें खौफ से भर देता है - यही उस वक्त सबके चेहरे पर नज़र आ रहा था।

तभी मेरे दिमाग मे एक विचार कौंधा - " मौत तो सामने है ही, फिर चाहे आँखे बंद कर के आए या आँखे खोल कर अपने हाथो ... "। यही सोचकर मैं उठी पहले बिना छुए थैले मे देखा क्या है, कुछ नज़र नही आया। फिर एक कदम बढ़कर मैंने थैले को छुआ, ऐसा लगा मौत मेरे पास आ रही है। थैला देखा, कुछ ना था, दुबारा देखा कुछ ना था ऐसा लगा जैसे मौत पास से निकली हो, मेरी मौत नही थी वो, वो मौत थी देश एक जिम्मेदार नागरिक की जो मैंने अपनी लापरवाही और सचेत न होने से दी थी और शायद उस डिब्बे मे बैठे हर एक ने मौत की थी।

और कुछ सोच पाती या करने का सोच पाने तक मेरा स्टेशन आ गया था। तभी नज़र रेलवे के लगाये हुए एक काले रंग के पोस्टर पर लगी जिस पर सफ़ेद रंग से लिखा था " सचेत रहिये, अपने आसपास की हर हरकत पर नज़र रखिये, कोई संदिग्घ व्यक्ति या वस्तु मिलने पर ... "। शायद काला रंग सोते सफ़ेद नागरिको के लिए था और सफ़ेद शब्द उनको बताने के लिए की उनको सुबह लानी होगी, जागना होगा, पर कितने जागे ... ।

यही सब सोचते मैं जा रही थी की तभी याद आया की वो थैला मैं ट्रेन मे ही छोड़ आई ... मतलब अभी और कितनी जिंदगियाँ मौत की गलियों से गुजरेंगी ... और कितनी मौते होगी ...

Thursday, February 14, 2008

Valentine Day - एक नजरिया

Valentine Day पश्चिमी देशो का एक त्यौहार (?) जो हमारी संस्कृति पर हमला है ... हमे इसे मनाने की बजाय इसका विरोध करना चाहिए! Valentine Day प्यार को जाहिर करने का दिन पर मैं इसे नही मानाउँगी क्योंकि प्यार जाहिर करने के लिए मुझे कोई विशेष दिन नही चाहिए ... ऐसे कितने वाक्य हर साल valentine day के दिन सुनने को मिलते है। हर साल विरोध होता है और इस विरोध के बीच पिछले साल से और कही ज्यादा लोग valentine day मनाते है। ये नजरिया हमारे देश में काफी लोगो का है। पर मेरा मत इनसे अलग है।

मैं भी valentine day मनाती हूँ ... पर एक दूसरी सोच के साथ ... मेरे valentine day मनाने के पीछे उद्देश्य कुछ और है। valentine day ... प्यार का पर्व जिसका मतलब मेरे लिए प्यार बाँटना है ... हालांकि प्यार बाँटने के लिए कोई विशेष दिन की जरूरत नही होती पर इस भागती दौड़ती जिंदगी के बीच हमे ऐसे कुछ दिनों की आवश्यकता महसूस होने लगी है और शायद ये उन कुछ कारणो मे से है जिसकी वजह से valentine day मनाने वालो की तादाद हर साल बढ़ रही है। valentine day ... भारतीय बसंत-पर्व का पश्चिमी रूप है। हालांकि बसंत-पर्व इतना प्रसिद्ध नही हुआ जितना की valentine day ... जिसकी वजह शायद "branding" हो सकती है ... पर दोनों का उद्देश्य एक ही है।

valentine day के commercial/business कारणों को छोड़ कर देखा जाए तो हमे महसूस होगा की ये एक दिन है जब हम अपने भूले हुए दोस्तो को बिना किसी कारन याद करते है, बातें करते है। कहने को तो दोस्ती किसी एक दिन की मोहताज नही होती, पर जिंदगी की बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच हम सब भूल जाते है। ऐसे मे valentine day, friendship day हमे वो दोस्त, वो पल, वो यादे एक बार फिर लौटा लाने का बहाना देते है। साल के 365( या 366) दिन मे से कितने दिन हमे याद रहता है की हम अपने दिल की बात जाहिर कर सके, कितने दिन होते है जब हम अपनों को बताते है की हम उनसे कितना प्यार करते है। कहने को तो लोग कहते है की ये बताने की जरूरत नही होती की आप किसी से कितना प्यार करते है ... प्यार अपने आप पता चल जाता है ... पर फिर भी जब कोई आपसे ये कहे की आप उसके लिए कितने जरूरी हो, वो आपसे कितना प्यार करता है ... ये आपको अपने होने का अहसास होता है, आपको पता चलता है की आप भी किसी के लिए ख़ास है, जरूरी है।

मेरे ख्याल से valentine day किसी भी अन्य भारतीय त्योंहार की तरह है जब हम अपनी खुशियाँ लोगो के साथ बताते है। valentine day कहने को पश्चिमी त्यौहार है पर जब बात खुशियाँ बाँटने की हो, जिंदगी जीने की हो तो उन्हें सीमाओं मे कैद नही करना चाहिए। रही बात हमारी संस्कृति के विरुद्ध होने की तो हमारी संस्कृति मे भी बसंत पर्व है और होली के दिन छेद चाद करना, दीवाली के दिन जूआ खेलना ये क्या हमारी संस्कृति के विरुद्ध नही है?

ये इंसान पर निर्भर करता है की वो किस नज़रिये से क्या देखता है या देखना चाहता है। हर सिक्के के दो पहलू होते है ... जब खुशी मिल रही है तो उसे देखो उसे जीओ, दुसरे पहलू के बारे मे सोचो पर उसकी वजह से खुशियों को बढ़ने से मत रोको।

आख़िर मे ... " बाटते चलो प्यार .... "