Saturday, February 14, 2009

एक किस्सा

काफी दिनों से कुछ लिखा नही, ऐसा नही की विषय की कमी हो या किस्सा कोई याद न आया हो ... पर कुछ दिन सोचा थोड़ा विराम दिया जाए। पर क्या करे ये हिंदुस्तान है ... यहाँ हर पल इतनी खबरें आती है की कोई न कोई विषय मिल ही जाता है। ऐसे ही एक समाचार पर नज़र पड़ी - एक संगठन का कहना है की valentine's day पर जो भी लड़का-लड़की साथ दिखे उनकी शादी करवा दी जायेगी। अच्छा है, माँ-बाप को दहेज़ नही देना पड़ेगा, शादी का खर्चा भी शादी कराने वाला संगठन उठाएगा। इससे अच्छा क्या हो सकता है। तो जितने भी लोग अभी शादी करने वाले है उनके लिए इससे अच्छा मौका क्या होगा ... उन्हें बस इतना करना है किसी पार्क, रेस्तरां आदि जगहों में से कही मिलना है ... फ्री में शादी हो जायेगी ... साथ में अपने परिवार वालों और रिश्तेदारो को भी आमंत्रित करना ना भूलियेगा।

ये तो हुई हँसी-मजाक की बात, पर अब मुद्दे पर आया जाय। पहली बार जब ये समाचार पढा तो बहुत हँसी आई, तरस भी आया संगठन वालों पर ... शायद काफी समय से न उनके पास कोई काम था और न ही मीडिया में नाम आया होगा। अब अगर किसी संगठन के पास ये दोनों ही ना हो तो वो संगठन कैसा ... और फिर कुछ दिनों में लोग भी भूल जायेंगे (वैसे भी भारतवासियों की याद्द्शात थोडी कमजोर होती है)। और अगर ऐसा हो गया तो न वोट, न सत्ता ना ही नोट ... । मतलब कुछ तो करना पड़ेगा न उनको।

पर अब सवाल ये आता है की क्या करे? बेचारे धर्म के नाम पर कुछ नही कर सकते क्योंकि इसका ठेका तो बड़ी पार्टियों और संगठनो ने पहले ही ले लिया है, समाज सेवा करते है तो खर्चा तो होगा सो होगा नाम भी ज्यादा नही मिलेगा क्योंकि मीडिया भी अब सिर्फ़ बड़े लोगो को ही समाजसेवा का सेहरा देती है। फिर क्या किया जाए ... उद्योगपतियों को भी परेशान नही कर सकते ... उनकी नीतियों की आलोचना कर के ... वो तो बेचारे ख़ुद ही recession के मारे है, bar, pub आदि बंद नही करवा सकते क्योंकि पहला तो ये की उनसे पंगा लेना महँगा पड़ सकता है और दूसरा अगर वाकई में ये बंद हो गए तो संगठन के लोगो का क्या होगा। तो आख़िर क्या किया जाए?

तब तो एक ही रास्ता बचता है इनके पास और वो है की आम आदमी को ही परेशान किया जाय। वैसे भी एक यही तो फार्मूला है जो लंबे समय तक मीडिया में कवर होता है ... आम आदमी भी जल्दी नाम नही भूलता है ... और कोई पंगा भी नही। पर अब बात वही अटक जाती है मुद्दा क्या होना चाहिए। महंगाई बढ़ रही है, मंदी का दौर चल रहा है, बेरोज़गारी बढ़ रही है ... ऐसे में कौनसा मुद्दा उठाया जाय जो जबरदस्त हो। इतिहास टटोला गया ... पता चला भारतीय संस्कृति .... एक ऐसा फार्मूला जो बिना ज्यादा आम लोगो को नाराज़ किए, लगाया जा सकता है। valentine's day आ रहा है, सो चल दिया दांव एक नए अंदाज़ में, आख़िर अपना ख़ुद का भी तो कुछ होना चाहिए तो अंदाज़ ही सही।

हर बार की तरह इस बार भी विरोध हो रहा है, पर इससे क्या, मीडिया में रोज़ नाम भी तो हो रहा है। संस्कृति से अपने को क्या लेना देना ... अपना मतलब तो बन गया है...