Sunday, March 16, 2008

दोयम दर्जा

आज़ादी के पहले अंग्रेजो ने भारतीयों को दोयम दर्जा दे रखा था - अपने देश मे रहते हुए भी भारतीयों को अंग्रेजो के बाद माना जाता था। आज़ादी मिली भारतीयों का दोयम दर्जा खत्म हो गया, वो नागरिक बन गए अपने देश के। पर एक तबका है जिसे आज़ादी के पहले भी और आज़ादी के बाद भी, भारत में भी भारत के बहार भी दोयम दर्जा प्राप्त था और आज भी कायम है - वो तबका है महिलाऐं।

"आज भी महिलाओं को नौकरी मे पुरुषो से ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है, बराबरी पाना बहुत ही मुश्किल होता है ..." ये शब्द बहुत बार सुने होंगे पर इस बार ऐसी ही कुछ पीड़ा जाहिर की महिला भारतीय आई.पी.एस. किरण बेदी ने। जब किरण बेदी ने ये महसूस किया है तो भारत के किसी अनजान गाँव मे तो महिलाओं को एक अनंत लड़ाई लड़नी पड़ती होगी ... अपने हक के लिए, अपनी पहचान के लिए ... । आसमान से बातें कर चुकी है महिला ... पर अब भी उन्हें नागरिक नही समझा जाता ... ।

अभी हाल ही मे एक ख़बर छापी (शायद वो ख़बर ही थी) - " एक मुस्लिम देश मे अब महिलाओं को बिना किसी पुरूष संरक्षक साथी के होटल-रेस्तारा जाने की इजाज़त होगी ... ये कदम सरकार ने देश को विकसित देश साबित करने के लिए उठाया ... " ऐसी कितनी ही बंदिशे अब भी मुस्लिम समाज मे है। लोगो का कहना है की ये सब इसलिए है क्योंकि मुस्लिम समाज मे तालीम अब भी कम है। पर अगर दुसरे धर्मो मे भी देखे तो ऐसे विभिन्न उदाहरण मिल जायेंगे। आज भी भारत के कई हिस्सों मे लड़कियों को अकेले बाहर नही जाने दिया जाता फिर चाहे वो अपने 7-8 साल के भाई के साथ ही जाए, परदा प्रथा आज भी कायम है ... ऐसे और भी उदाहरण आपको अपने आस-पास मिल जायेंगे।

बार काउन्सिल मे एक महिला को सिर्फ़ इसलिए प्रवेश नही मिला क्योंकि वो एक महिला है। कही महिलाओं को चुनाव लड़ने का अधिकार नही, तो कही सत्ता मे आने के बाद भी सत्ता चलने का अधिकार नही। सरकार ने महिलाओं को सत्ता मे आने का हक तो दे दिया पर सत्ता करने का हक उनके पति या बेटो के पास ही रह गया। कही जायदाद मे अधिकार नही तो कही पढ़ाई के लिए प्रवेश नही। देश के पिछडे हुए गाँव की बात जाने भी दे तो देश की राजधानी मे स्थित सबसे बड़े अस्पताल एम्स मे अपनी पहचान से अनजान, अपने अस्तित्व के लिए जूझती नवजन्मी 10 बच्चियों के लिए क्या कहेंगे जिन्हें माँ-बाप अपना भविष्य ख़ुद बनने के लिए छोड़ गए।

महिलाओं को आरक्षण देने की बातें होती है पर उन्हें इतनी सुरक्षा भी मुहैया नही की वो रात को अकेले बाहर जा सके ... रात तो छोड़ो आजकल का माहौल देखकर तो ये लगता है दिन मे भी वो सुरक्षित नही है। बचपन भाई को सम्हालते, शादी के बाद पति को और बाद मे बच्चो को सम्हालते हुए जिंदगी निकाल देने के बाद भी यही कहा जाता है की तुमने क्या किया। ये बातें शायद किसी पिछडे हुए गाँव की लगती होगी पर ऐसा नही है ये कहानी महानगर के घरों मे हर रोज़ दोहराई जाती है। ऑफिस मे महिला अफसर है तो उसे काम करवाने के लिए कर्मचारियों से मशक्कत करनी पड़ती है साथ ही ध्यान रखना पड़ता है की कही पुरूष सह्कर्मचारियो का अहं को चोट न पहुचे।

पुरुषो के समाज मे गलती अगर पुरूष की हो तो भी सजा इमराना जैसी महिलाओं को ही मिलती है। और अगर इन्साफ मिल भी जाए तो उसके लिए कितना जूझना पड़ता है ये जेसिका लाल केस को देखकर कोई भी जान सकता है। भारत ... जहाँ नारी को पूजा जाता है .... पर वो पूजा शायद मूर्तियों तक ही सीमित है तभी तो नारी के अनादर की कहानियां तो आए दिन की ख़बर बन चुकी है।

कुछ महिलाओं ने अपनी पहचान, अपना मुकाम बनाया है पर उन्हें कितनी मुश्किलो का सामना करना पडा और अब भी करना पड़ रहा है। उनके इस मुकाम को पाने के लिए अगर उनके परिवार ने साथ दिया तो समाज ने रोड़ा खडा कर दिया, तो कही समाज ने भी साथ दिया। पर ऐसी कितनी महिलाऐं है जिन्हें परिवार का, समाज का साथ मिला। आज भी कई जगह महिलाओं को पैर की जूती समझा जाता है ... । लोग कहते है ज़माना बदल रहा है महिलाओं को आगे आने का मौका दिया जा रहा है सोनिया गाँधी, सुनीता विलियम्स आदि कितने उदाहरण है। पर क्या ये वाक्य अपने आप मे ये नही सिद्ध करता की महिलाओं को सदियों से दोयम दर्जा प्रदान था और अब भी वही दर्जा है जिसे धीरे-धीरे बदलने की कोशिश(?) की जा रही है। आज़ादी के 60 साल बाद भी महिलाएं अपनी पहचान की लिए जूझ रही है, अपने कुचले हुए अस्तित्व को तलाश रही है, अपनी किस्मत किसी और के हाथो नही बल्कि अपने हाथों लिखने के लिए संघर्ष कर रही है। जाने कब इस संघर्ष का अंत होगा, जाने कब उन्हें बराबरी का दर्जा मिलेगा, कब उन्हें भी नागरिक समझा जाएगा और कब उन्हें आजाद इंसान होने का हक मिलेगा ...

2 comments:

manjula said...

आपने सही कहा रूचि पर इस देश के महिलाओं की त्रासदी यही है, कि उन्‍हे या तो देवी मान कर पूजा जाता है या पैर की जू‍ती. सिर्फ इंसान समझना क्‍या इतना मुश्किल है.

Anonymous said...

Ok, but i am completely disagree with you.