Monday, January 21, 2008

11/7 Experience

11/7/2006 ... शायद बहुत लोगो को इस तारीख का मतलब ना पता हो ... ये तारीख है ... मुम्बई बम विस्फोटो की ... जिसने लोगो को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था ... किसी को देश के बारे में ... किसी को देश की सुरक्षा के बारे में ... कोई मुम्बई के बारे में सोच रहा था, जो विस्फोटो के कुछ घंटो के बाद ही वापस पहले जैसी चालू हो गयी थी। इन विस्फोटो के बाद मुझे भी बहुत कुछ अनुभव हुआ ... बहुत कुछ सोचने पर मैं मजबूर हो गयी ...

" ... अच्छा हुआ बम first class में रखा था, अगर यही बम second class में होता तो पता नही कितनी जाने जाती ..."
" ... बम रखने वाला भी गरीबो की सोचता है, तभी तो बम first class में रखा ..."

ये कुछ वाक्य है जो मुम्बई के विस्फोटो के बाद मैंने सुने ... और इन वाक्यों ने मुझे अन्दर तक झकझोर दिया, कुछ सवाल खडे कर दिए मेरे सामने ... क्या first class में बैठने वाले इंसान नही होते? क्या first class में बैठने वालो के लिए इंतज़ार कर रहा उनका परिवार नही होता? क्या उनके जाने से किसी की जिंदगी वीरान नही होती ... ? क्या किसी गरीब की बदकिस्मती उसे उस दिन first class में नही बैठा सकती?

कुछ वाक्यों से लोगो ने कितनी आसानी से इंसान-इंसान में फर्क कर दिया, बिना ये सोचे कि कोई भी जाये पर उनके इंतज़ार में बैठे लोगो का इंतज़ार अब कभी खतम नही होगा। कितनी आसानी से लोगो ने ये सब कहकर साबित कर दिया कि नुकसान उतना नही हुआ जितना हो सकता था ... पर उन्हें कोई ये क्यो नही समझाता कि जिनके अपने गए उनका नुकसान तो ऑका भी नही जा सकता।

इधर लोग अपनों कि खैर-खबर लेने के लिए परेशान हो रहे थे और उधर लोग उन्हें समझा रहे थे "... मुम्बई में ये आम बात है ... धीरे-धीरे आदत हो जायेगी ..." ... आदत किसकी जो गए उनके बिना जीने की ... हाँ कुछ दिनों में हो जायेगी और फिर ... और फिर कोई और चला जाएगा ... उसके बिना भी जीने की आदत हो जायेगी ... आख़िर कब कब ... कब तक हम अपने आपको इस तरह से दिलासा देते रहेंगे और कब तक अपने आपको खोखला करते रहेंगे।

इतना सब होने के बाद बहुत कुछ हुआ पुलिस ने छानबीन की, सरकार ने सात्वना दी और कुछ पैसे भी दिए ... भरपाई के लिए जो मर गए उनकी भरपाई के लिए ... जो जख्मी हो गए उनके जख्मो को भरने के लिए ... विपक्ष ने सरकार को कोसा, लोगो ने सरकार को कोसा पर क्या ये सही था? क्या हम जिम्मेदार नही थे इसके लिए। क्या हम सतर्क रहकर इस दुर्घटना को ताल नही सकते थे। ऐसे वक़्त तो हम अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ कर आगे बढ़ जाते है पर क्या हमारा ग़ैर-जिम्मेदाराना रवैया इन सबके लिए जिमेदार नही है? कहने को तो हमारी सुरक्षा सरकार और पुलिस की जिम्मेदारी है पर क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नही है?

दुनिया ने ये सब होने के बाद मुम्बई कि तारीफ़ की, कि इतना सब होने के बावजूद मुम्बई कि रफ़्तार कुछ पल के लिए ठहरी पर जल्द ही लौट आई ... और हम खुश हो गए ... वापस वही ढर्रा चालू। कब तक ... आख़िर कब तक ये चलता रहेगा? कब तक हम अपने लिए जीते रहेंगे? कब हम दूसरो के लिए जीना सीखेंगे? कब सीखेंगे कि किसी के जाने का दुःख सिर्फ दुःख होता है, इसमे भेदभाव नही किया जा सकता ... आख़िर कब?

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